परिचय
रथ यात्रा, जिसे जगन्नाथ रथ यात्रा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के ओडिशा राज्य के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से संबंधित एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह त्योहार भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु का एक रूप), उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विशाल रथों पर सवार होकर उनके घर, गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान की यात्रा को दर्शाता है। यह त्योहार न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपराओं और समर्पण का एक अनूठा संगम भी है।

रथ यात्रा का इतिहास और महत्व
रथ यात्रा की उत्पत्ति वैदिक काल से जुड़ी मानी जाती है और इसकी कहानियाँ पुराणों में भी पाई जाती हैं। इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति और समर्पण को प्रकट करना है। रथ यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने दिव्य वाहन (रथ) पर सवार होते हैं और गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। यह माना जाता है कि यह यात्रा भगवान के भक्तों के लिए अपने देवता के दर्शन का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करती है।
त्योहार की तैयारी
रथ यात्रा के पहले महीनों से तैयारी शुरू हो जाती है। सबसे महत्वपूर्ण कार्य विशाल रथों का निर्माण है। इन रथों को बनाने के लिए विशेष प्रकार की लकड़ी का उपयोग किया जाता है, और यह कार्य कुशल कारीगरों द्वारा किया जाता है। हर रथ की ऊँचाई, चौड़ाई और संरचना में विशेषताएं होती हैं, जो हर वर्ष एक समान होती हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ, जिसे ‘नंदीघोष’ कहा जाता है, सबसे बड़ा होता है। बलभद्र का रथ ‘तालध्वज’ और सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’ कहलाता है।
रथ यात्रा का दिन
1. रथ यात्रा का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन होता है, जो आमतौर पर जून या जुलाई के महीने में आता है। इस दिन, लाखों भक्त पुरी में एकत्र होते हैं। सबसे पहले, मंदिर के पुजारियों द्वारा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को रथों पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद, पुरी के राजा ‘छेरा पोहरा’ नामक एक पारंपरिक रस्म का पालन करते हुए, स्वर्ण झाड़ू से रथों के मार्ग को साफ करते हैं, जो राजा की भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण को दर्शाता है।
2. जब सब कुछ तैयार हो जाता है, तो भक्त रथों को खींचना शुरू करते हैं। इस कार्य को अत्यधिक पवित्र माना जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि रथ खींचने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भक्तगण बड़े उत्साह और भक्ति के साथ रथों को गुंडिचा मंदिर की ओर खींचते हैं, जो लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित है। इस दौरान भक्तों द्वारा भजन, कीर्तन और जयकारे लगाए जाते हैं, जो पूरे माहौल को भक्तिमय बना देते हैं।
गुंडिचा मंदिर में प्रवास
गुंडिचा मंदिर पहुंचने पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वहां सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इस अवधि को ‘गुंडिचा यात्रा’ कहा जाता है। इस समय के दौरान, भक्तगण गुंडिचा मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं। इसके बाद, भगवान की वापसी यात्रा ‘बहुड़ा यात्रा’ प्रारंभ होती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने मुख्य मंदिर, श्रीमंदिर, लौटते हैं।
बहुड़ा यात्रा
बहुड़ा यात्रा रथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने सात दिवसीय प्रवास के बाद गुंडिचा मंदिर से पुरी के मुख्य श्रीमंदिर लौटते हैं। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन होती है। वापसी यात्रा के दौरान भी भक्तगण भगवान के रथों को खींचते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं। यह विश्वास किया जाता है कि बहुड़ा यात्रा के दौरान भगवान अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं और उनकी मनोकामनाएँ पूरी करते हैं। इस यात्रा का धार्मिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक है, और यह पुरी में लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
रथ यात्रा के प्रमुख आकर्षण निम्नलिखित हैं:
- भव्य रथ: भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशाल और सजावटी रथ, जिनकी संरचना और सजावट अद्वितीय होती है।
- छेरा पोहरा रस्म: पुरी के राजा द्वारा स्वर्ण झाड़ू से रथों के मार्ग की सफाई, जो भक्ति और विनम्रता का प्रतीक है।
- रथ खींचना: लाखों भक्तों द्वारा रथों को खींचना, जो अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है।
- सांस्कृतिक गतिविधियाँ: भजन-कीर्तन, नृत्य और लोक संगीत, जो पूरे माहौल को भक्तिमय और उत्सवपूर्ण बनाते हैं।
- गुंडिचा यात्रा और बहुड़ा यात्रा: भगवान का सात दिवसीय गुंडिचा मंदिर में विश्राम और वापसी यात्रा, जो श्रद्धालुओं को विशेष रूप से आकर्षित करती है।
रथ यात्रा के खींचने की प्रक्रिया
रथ यात्रा के दौरान, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों को भक्तगण खींचते हैं। रथ खींचने की प्रक्रिया में, पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय की जाती है। पहले, पुजारियों द्वारा मूर्तियों को रथों पर स्थापित किया जाता है और छेरा पोहरा की रस्म पूरी होती है। इसके बाद, भक्तगण मोटी रस्सियों को पकड़कर रथों को खींचते हैं। यह कार्य अत्यंत पवित्र माना जाता है और विश्वास किया जाता है कि रथ खींचने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भक्त भजन-कीर्तन और जयकारों के साथ इस प्रक्रिया में भाग लेते हैं, जिससे माहौल भक्तिमय हो जाता है।
रथ यात्रा की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
1. रथ यात्रा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह त्योहार भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति और आस्था को प्रकट करता है। यह विश्वास किया जाता है कि रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। इस त्योहार के माध्यम से, भक्त भगवान के साथ अपनी आत्मीयता और निकटता को महसूस करते हैं।
2. सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, रथ यात्रा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस त्योहार के दौरान विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियाँ, जैसे नृत्य, संगीत और नाटक आयोजित किए जाते हैं। ये गतिविधियाँ भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसके अलावा, रथ यात्रा के दौरान विभिन्न प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं, जो भारतीय पाक कला का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
समापन
रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक सहयोग का एक अद्वितीय उदाहरण भी है। यह त्योहार भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति और समर्पण को प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, रथ यात्रा के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियाँ भारतीय समाज के विविध पहलुओं को उजागर करती हैं। इस प्रकार, रथ यात्रा भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हर वर्ष लाखों भक्तों को एकत्रित करती है और उन्हें भगवान के आशीर्वाद से लाभान्वित करती है।
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रथ यात्रा से संबंधित 5 ट्रेंडिंग प्रश्न
प्रश्न 1: रथ यात्रा का इतिहास क्या है?
उत्तर: रथ यात्रा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है और यह भगवान जगन्नाथ की पौराणिक कथाओं से संबंधित है। यह त्योहार पुरी में 12वीं सदी में आरंभ हुआ माना जाता है। पुराणों में इस त्योहार का उल्लेख मिलता है, जहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
प्रश्न 2: रथ यात्रा कब और कहाँ मनाई जाती है?
उत्तर: रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (जून या जुलाई) के दिन ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से प्रारंभ होती है। यह त्योहार लगभग 9 दिनों तक चलता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर की यात्रा करते हैं और फिर वापस आते हैं।
प्रश्न 3: रथ यात्रा के दौरान किन प्रमुख रस्मों का पालन किया जाता है?
उत्तर: रथ यात्रा के दौरान प्रमुख रस्में हैं:
- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का रथों पर स्थापना।
- छेरा पोहरा रस्म, जिसमें पुरी के राजा स्वर्ण झाड़ू से रथों का मार्ग साफ करते हैं।
- रथ खींचने की रस्म, जिसमें लाखों भक्त रथों को खींचते हैं।
- गुंडिचा मंदिर में भगवान का सात दिवसीय प्रवास।
प्रश्न 4: रथ यात्रा के धार्मिक महत्व क्या हैं?
उत्तर: रथ यात्रा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यह विश्वास किया जाता है कि इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। भक्तों के लिए यह भगवान के निकट आने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। रथ खींचने से पुण्य लाभ होता है और भगवान के प्रति भक्ति की अभिव्यक्ति होती है।
प्रश्न 5: रथ यात्रा में शामिल होने के लिए कौन-कौन से सुरक्षा उपाय अपनाए जाते हैं?
उत्तर: रथ यात्रा में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई उपाय अपनाए जाते हैं, जैसे:
- बड़ी संख्या में पुलिस और सुरक्षा बलों की तैनाती।
- भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बैरिकेड्स और मार्गदर्शन।
- चिकित्सा सेवाओं और एम्बुलेंस की व्यवस्था।
- सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन के माध्यम से निगरानी।
- श्रद्धालुओं के लिए पानी और प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा।